मुख्यमंत्री जी कृपया,अपनी सलाहकारों की टीम को टाइट कीजिए

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कोरोना को टक्कर देने के लिए राज्य सरकार हर मोर्चे पर तत्परता से कार्य करती नज़र आ रही है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के दिशा निर्देशों पर प्रशासनिक अमला भी दिन-रात एक किये है।धरातल पर पूरी लगन से काम करने वाले लोगों की भी कमी नहीं है। लोगों को अधिक से अधिक राहत  पहुँचाने के लिए मुख्यमंत्री के स्तर पर कई राहत भरी घोषणाये  भी की जा रही हैं।

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लेकिन कुछ मामले ऐसे भी देखने में आ रहे हैं जिनकी वजह से मुख्यमंत्री की आलोचना भी हो रही है ,इसमें ताज़ा उदहारण दिल्ली व एनआरसी में फंसे उत्तराखंडियों की त्वरित वापसी को लेकर है।

अब जब,उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की पहल पर ,उत्तरप्रदेश की परिवहन सेवा के माध्यम से,उन लोगों को उत्तराखंड लाया गया, तब जाकर उत्तराखंड सरकार की नींद टूटी।

ऐसा  भी नहीं है कि,सरकार और मुख्यमंत्री के सलाहकारों के कान तक ये बात न पहुंची हो जबकि मीडिया और सोशल मीडिया में लगातार उन लोगों को उत्तराखंड लाने की मांग जोर-शोर से उठ रही थी।

मेरा मानना है कि इसमें सीधे तौर पर मुख्यमंत्री की उस टीम का दोष है जिन्हे, मोटी पगार इन्ही सब कामो पर नजर रखने और,उन सब की लगातार सही जानकारी मुख्यमंत्री तक पहुँचाने की है।पर वे सब इसमें फेल हो गए। ये उन सबकी  योग्यता पर भी एक प्रश्नचिन्ह है। ऐसी सलाहकारों की फौज का क्या करना जो सही समय पर सही सलाह न दे पाएं।या फिर,त्वरित गति से काम को अंजाम न दे पाए ।

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दिल्ली में भी प्रदेश सरकार की ओर से पूरा अमला बैठा है। इस लापरवाही में उस अमले का हर एक व्यक्ति भी उतना ही दोषी है जितना राजधानी में बैठ कर सरकारी पैसे से ऐश करने वाले सलाहकार और नौकरशाह।

अब इतनी फ़ज़ीहत होने के बाद सरकार जागी है और ,आज  प्रातः शुक्रवार को पचास लाख की राशि मुख्यमंत्री राहत कोष से अपर स्थानिक आयुक्त को  विभिन्न स्थानों में फंसे उत्तराखंड के लोगों की सहायता के लिए जारी कर दी गई।

मुख्यमंत्री की सचिव राधिका झा की तरफ से जारी आदेश में कहा गया है कि, इस राशि से विभिन्न स्थानों में फंसे लोगो की मदद की जानी है तथा ,ये धनराशि सिर्फ इसी मद में खर्च होनी चाहिए।

यदि, यही काम पहले हो जाता तो, इतनी आलोचना से बचा जा सकता था। मुख्यमंत्री जी कृपया,अपनी सलाहकारों की टीम को टाइट कीजिए। ये आपकी मेहनत पर पानी फेरते नज़र आ रहें हैं ।

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