पहाड़ की खेती बचाने व किसानों की बेहतरी को बने ठोस नीति

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कृषि कल्याण दिवस के दूसरे सत्र में विषम भौगोलिक हालात में संसाधनों के अभाव में खत्म होती पर्वतीय कृषि पर गहरी चिंता जाहिर की गई। उपनेता करन सिंह माहरा ने पहाड़ की खेती बचाने व किसानों की बेहतरी को ठोस नीति बना उस पर ईमानदारी से अमल करने की पुरजोर वकालत की। कहा कि कुमाऊं गढ़वाल में बंजर पड़ चुके 80 फीसद खेतों में हल न लगने से वर्षा जल भूमिगत जल भंडार तक नहीं पहुंच रहा। नतीजा 70 प्रतिशत नौले व जलस्रोत मृतप्राय हो गए हैं। उन्होंने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की पर्वतीय कृषि नीति पर अमल कर विपणन के पुख्ता बंदोबस्त, उपज के वाजिब दाम की जरूरत बताते हुए कहा कि खेती से जुड़ कर ही पलायन रोका जा सकता है।

विकासखंड के सुदूर पातली में द्वितीय सत्र में मुख्य अतिथि उपनेता एवं विधायक माहरा ने कहा, पहाड़ की कठिन खेती के अनुरूप नीति पर अमल नहीं किया गया तो खेती बचाना दूभर होगा। इससे पलायन और बढ़ेगा। मौजूदा हालात पर कहा कि किसानों को मिलने वाला अनुदान खातों में पहुंचाना तर्कसंगत नहीं है। बेहतर होगा सीधे काश्तकार को इसका लाभ दिया जाए।

देना होगा सिंचाई का विकल्प

उपनेता माहरा ने किसानों से कृषि से जुड़े रहने का आह्वान किया। वहीं मांग उठाई कि सरकार को पूरा फोकस पहाड़ पर करना ही होगा। सिंचाई का विकल्प तैयार करने होंगे। जंगली जानवरों से निजात को सूअर रोधी दीवार व बंदर बाड़े विकसित करने होंगे। इसके लिए उन्होंने पूर्व की हरीश रावत सरकार में बनी योजनाओं पर काम करने की जरूरत भी बताई। ताकि खेती बची रहे और किसानों की आर्थिकी मजबूत हो। माहरा ने विभागीय अधिकारियों से सरकारी योजनाओं का लाभ अंतिम किसान तक पहुंचाने को भी कहा।

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